मेरी माँ ने झूठ बोल के आंसू छिपा लिया
मेरी माँ ने झूठ बोल के आंसू छिपा लिया
भूखी रह भरे पेट का बहाना बना लिया.
.सिर पे उठा के बोझा जब थक गई थी वोभूखी रह भरे पेट का बहाना बना लिया.
इक घूंट पानी पीके अपना ग़म दबा लिया.
सारा दिन की थी मेहनत पर कुछ नहीं मिला
इस दर्द को ही अपना मुकद्दर बना लिया.
फटे हुए कपड़ों को सीं सींकर है पहनती
ग़मों को फिर आँखों में अपनी छिपा लिया..
कब से अकेली जी रही ख़ुद ही के वो सहारे
उसने तन्हाई को अपना बना लिया..
पता था उसे,आज भी आया नहीं बापू
तो डाकिया से फिर पुराना ख़त पढ़ा लिया..
अगर इस माँ का अब इक आंसू निकल गया
तो मान लेना तुमने अपना सब गवां दिया
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